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Friday, December 23, 2011

एकटा छला गोनू झा


गोनू झा एखनो जीविते छथि

गोनू झा मृत्युशय्या पर छलाह | प्राण अब-तबमे रहनि | पूरा गाम उनटल रहय महापुरुषक महाप्रयाणक बेलामे | तखने गोनू झाकें कने होस अयलनि, बजलाह – ” भोनू! भोनू!! “
भोनू दौड़लाह हुनकर मुहँ लग – ” की कहे छी भाई? कोनो इच्छा? “
गोनू बजलाह – ” नहि, आब किछु नहि, गोदान करा दैह | “
फेर गोनू थम्हि बजलाह – “हे! एकटा एहन गाय ताकू जे गोदान बाद हमरहि संगे ओकरो प्राण छूटि जाइक | नहि कतौ भेटय तs अपने खुट्टा परक फोलि आनु | जाउ, जल्दी जाउ | आब हमर समय समाप्त भs रहल अछि | “
पूरा वातावरण नोरा गेल | तुरत एक गोटो गाय – फोलि लs अनलक | गोनू बाबू गायक नांगरि धयलनि | मंत्रोच्चारण भेल | आ गोनू – गाय दुनु टगि गेल |
आ गोनू बाबू ऐ पृथ्वी सं विदा भs गेलाह |
एकर बाद गोनू बाबू स्वर्गमें रहथि | हीनकर क्रिया – कर्मक लेखा – जोखा भs रहल छल | चित्रगुप्त महाराज फेरिमे रहथि | एहन लोक आइ धरि नहि देखल | हिनकर कोन क्रिया पुण्य तथा कोन पाप तकरा फडिछायब बड़ दुरुह |
जखन चित्रगुप्त महाराजसं हिनकर समस्या नहि सोझरयलनि तs यमराज स्वयं एहिमे पड़लाह | हुनकर सभ कागज – पत्र देखलनि आ अन्तमें गोनू कें कहलखिन जे आहाँ अपन जीवनमे बस एकटा पुण्य कयलहूँ जे गौ-दान कयल | बाजू आहाँ, आब की करs चाहब |
गोनू कनेक सोचलनि आ फेर कहलखिन हमरा हमर गायकें मंगा देल जाओ |
यमराजक आदेश भेलनि | गाय आनल गेलिओ हुनका सुपुर्द करैत यमराज कहलखिन – “यैह आहाँक सम्पति भेल | एहिसँ आहाँकें गुजर करबाक अछि | ई गाय अहिं टाक बात मानत | बस | “
कहैत यमराज सभा विसर्जित कयलनि | एम्हर गोनू गायक पीठ पीठ सोहरोलनि आ ओकरा कानमे किछु कहलखिन | कि एकाएक स्वर्ग में हरबिररो मचि गेल | गाय यमराज आ चित्रगुप्त दुनुकें चौताड़s लागल | दुनु भगैत जाथि आ ओ दुनुकें हड़पेटने जानि |
एहिना जखन बड़ीकाल चलैत रहल तs यमराज घुरछी कटैत गोनू लग आबि खसि पड़लाह – ” जो हम तोरा सं हारि मानलाहूँ |
” तों स्वर्गमें रहs योग्य नहि छें | ” फेर अपन सेवकें आदेश दैत कहलनि – ‘ गोनू कें पृथ्वी परक मिथिलापुरी खण्ड पठा देल जाय | “
आ गोनू पुनः मिथिला आबि गेलाह ओ एखनो जीवि़त छथि | मरलाह नहि | मरबो नहि करताह |

गोनू झाक पंचौती

गोनू झाक प्रतीक्षा करैत – करैत पंडिताइनक आंखि पाथर भs गेलनि आ ओहि पाथर भेल आंखिमें निन्द आबs लग्लनि | पंडिताइन सोचैत रहलीह जे दुपहर राति भेलै मुदा आइ एखन धरि कतस छथि से नहि जानि | कहकिs गेल छलाह जे आइ कोनो काज नहि अछि, तुरंन्त घुरि आयब | मुदा ओ तुंरत पहाड़ भs गेलनि |
हारि – थाकिs पंडिताइन भोजन कs लेलनि आ हुनकर भोजन काढि आ तकरा ढाकी सं झापिं चौकी तरमे धs कल्याण करौट देलनि |
निसभेर निन्नमे केबाड़ ढकढकयाबक आवाज भेलनि | कुमोने उठलौह आ छिटकिल्ली फोललनि, तs देखैत छति जे गोनू झा छति | आंखि कड़जन्नी सन – सन झुमैत हिनकर तामस सातम अकास पर ठेकि गेलनि – ‘जाउ, आब किए अयलौं | एकेबेर भोरे मे अबितौं | भांग पीलाक बाद आहाँकें तs होस नै रहैय | जनै छिऐ, कते बजैत हेतै? |
गोनू झा कें पत्नीक प्रवचन नीक नहि लगलनि | भांग अपन मस्तीमे छले, मति गेलाह तामसमे | मुदा ततक्षणे किछु सोचि तमासकें घोंटि गेलाह आ चौकी पर आबि उठा देलनि पराठी – जुनी करू राग विरोग हे जननी, जुनी करू राम विरोग…|
एहि गति पंडिताइन आर प्रज्वलित भs उठलीह – एक तs चोरीं ताइ पर सं सीनाजोड़ी | हम अभागल जे आहाँ कें प्रतीक्षा करैत – करैत आजिज भेल छी आ आहाँ ऐ निसभेर रातिमे पराती गबैत छी | जानि नहि विधाता केहन हाथे हमरा सोंपि देलनि …|
गोनू झाक धैर्य आब जबाब दs देलकनि | ओ फुटि पड़लाह – ” गय अलच्छी तों हमरा कहबें? हम तोहर बहिया? तोहर खबास? हम तोरा मोने चलब? तोहर गुलाम भs कs रहब? ” आ कहैत लगलाह पंडिताइन के डेन्गबs |
पंडिताइन हिनकोसं कम नहि | जतबा जोर सं चोट नहि लगैत छलनि, ताहिसँ चौ-गुणा जोरसं बपहारि काटब शुरू कs देलनि | आ से ई तेहन लीला कयलनि जे पूरा गाम गोनू झाक आंगनमे उनटि गेल |
सभ हिनकर बन्न भेल केबाड़कें पीटाs लागल जखन बड़ी काल धरि पिटैत रहलाह तs आखिरमे गोनू छिटकिल्ली अलगौलनि |
सभक एकेटा प्रशन – एना किए?
आ ताहि प्रशन पर पुनः दुनु गोटेमे उत्तराचौरी अर्थात् गलती इ कयलनि, नहि गलती हिनकर छियनि | आ एहिना बड़ी काल धरि चलैत रहल |
अन्तमे गोनुकें नहि रहल गेलनि | ओ गौआँ सभ दिस पलटलाह आ कहब आरम्भ कयलनि – ” सुनु औ गौआँ-घरुआ सभ! हमरा जनैत गलती हिनकर छियनी मुदा हिनकर कहब छनि जे गलती हमर छी | आ तेहना सिथतिमे ई झगडा नहि फरिछा सकैए | तें हमर कहब जे हम दुनु गोटे तं बादी – प्रतिबादी भेलौं तें हमरा दुनु गोटाके स्वयं एकरा फरिछा लेबs दिs दोसर, संय-बहुक झगडा, पुच भेल लबडा | “
-” नै, से नै भs सकैए | ” आइ हमरा ऐ झगड़ाक पंचैती कs दै जाथु | पंडिताइन ओही रोद्र – रूप मे अडैत बजलीह |
-” तs ठीक छै | गोनू बजलाह-’ पंचौती भैये जाय | अस्तु | हम कहब जे हमरा दुनूक झगड़ाक कि कारण अछि से तs आहाँ सभ नहि देखलौं | तें नीक होयत जे जे व्यक्ति सभ एहि झगड़ाक प्रत्यक्षदर्शी थिकाह वैह पंच होथि | “
-” मुदा…….??? ” गौआंके सम्मिलित शंका भेलनि |
-” नहि गोनू बजलाह – ” देखू बड़ी कालसँ ऐ जाड़मे ठिठुरैत पांच टा पंच कोठीक पाछू मे बैसल सब घटनाकें देखि रहल छथि | तें हुनके बहार बजा पुछि लेल जाय……….| “
एतबा कहबाक रहनि कि सभ कोठी पाछू हुलल | ओतs देखैत छथि जे परोपट्टाक पाँच टा नामी चोर सशंकित भावे ठाढ़ अछि |
फेर कि छल मौसमे बदलि गेल! गोनू लीलापर सभ क्यों दंग रही गेलाह | तखने गोनू पत्नीसं पुछ्लनि – ” बेसी चोट तs नै लागल? “
एम्हर ता चोरक इलाज भs गेल | पंडिताइन लजाइत घरसं बहरा गेलीह |



गोनू झाक मादे


हमरा गोनू झाक मादे किछु नहि कहबाक अछि | गोनू झा स्वयं एक टा चरित्र छथि जे अपने खिस्सामे बहुत किछु कहि जाइत छति |

गोनू झा कोनो खिस्सा नहि लिखलनि | हुनकर सम्पूर्ण जीवने एहन-एहन विशेषतासं भरल - पुरल छल जे ओ खिस्सा बनि गेल | आ जे खिस्सा एखन मिथिलाक गाम - गाममे बूढ - पुरनियांसं सुनल जा सकैछ, प्रसंगवश कोनो उदहारणमें प्रयोग होइत देखल जा सकैछ |

अपन देशमें एहि चरित्रसं मिलैत - जुलैत बहुतो चरित्रक खिस्सा प्रचलित अछि. जाहिमे प्रचलित अछि बीरबल, तेनालीराम, गोपाल भीड़, देवन मिसर, आदि | मुदा गोनू झा एहि सभसँ भिन्न छथि | हिनक खिस्सामें अलगटटे चिन्हल जा सकैछ, कारण एहि खिस्सा सभक ह्रदय रहैत छैक धुर्तई | आ तें गोनू झाकें ' धूर्त - शिरोमणि ' क विशेषणसं अभिहित कयल जाइत अछि | गोनू झा वीरबल, तेनालीराम, गोपाल भांड, अथवा अन्य अन्य परिचित चरित्रसं भिन्न रहने एखनो जीवित छथि |

गोनू झाक ई चरित्र - कथा कतहु लिपिदिध नहि अछि | एही कथा सभकें मिथिलामें कहबाक परम्परा रहल अछि | आ जे नाटकक एक उपांग ' एकालाप ' सदृश होइछ | कथा कहबा काल कथावाचक किछु बात तं शब्दशः कहैछ मुदा बहुत रास बात ओकर भाव - भंगिमा द्वारा अभिव्यक्त होइछ | आ सैह भावः - भंगिमा गोनू झाक चरित्र - कथाक चमत्कार अछि | अर्थात् जखन कथामे निहित धुर्तई आ कथा वाचकक भावः - भंगिमा संगमे होइछ तखने गोनू झाक असली कथाक सागर लहरा उठैछ |

माँ कालीक आशीर्वाद


मिथिलामे माँ काली शक्तिक अवतार मानल जाइत छथि | गोनू झा हुनकहि उपासक छलाह | हुनक उपासना कयलाक बादहि ओ कोनो आन काज करैत छलाह | तेँ हुनका प्रत्येक काजमे सफलता भेटैत छलनि |

एक दिन गोनू झा निशचय कयलनि जे, जेना हो, माँ कालीक दर्शन कायल जाय | एहि लेल ओ निरन्तर हुनक आराधना करय लगलाह | काली प्रसन्न भेलथिन आ निशचय कयलनि जे साक्षात् दर्शन देबासँ पूर्व गोनू झाक साहसक परीक्षा लेल जाय |

एक राति गोनू झा सूतल रहथि | निसभेर रातिमे माँ कालीक दर्शन देलथिन | हुनकर रूप विकराल छल | एक सय मुहँ रहनि मुदा हाथ दुइये टा | गोनू बाबू हुनकर ई रूप देखि कनिको विचलित नहि भेलाह | ओ पहिने तs हुनका प्रणाम कयलनि मुदा गोनू ठठाकs हँसि पड़लाह |

माँ कालीककेँ विशवाश रहनि जे हुनकर ई भयंकर रूप देखि गोनू झा विचलित भs उठताह, मुदा हुनका हँसैत देखि पुछलथिन - " की, हमर ई रूप देखि अहाँकेँ डर नै भेल? "

गोनू झा कहलथिन - माँ बाघसँ डर होइत छैक मुदा ओकर बच्चा ओकरासँ कनेको नहि डराइत अछि, अपितु ओकरा देह पर कदैत - फनैत रहैत अछि | तखन अहीं कहू जे अहाँ सँ अहाँक नेनाकेँ डर लगतै? "

माँ काली कहलथिन - " गोनू अहाँक मन्तव्य एकदम सत्य अछि | मुदा ई तs कहू जे हमरा देखि अहाँकेँ हँसि कियक लागि गेल? "

गोनू झाक उत्तर भेलनि - " हे माँ हमरा मात्र एक मुहँ आ एक नाक अछि, मुदा दु टा हाथ रहितो सर्दी भेला पर नाक पोछैत - पोछैत फिरीसान रहैत छी " |

- " अहाँ कहs की चाहैत छी ? "

- " अहाँकेँ एक सय मूँह आ एक सय नाक अछि, मुदा हाथ दुइये टा | हमरा चिन्ता भs गेल जे सर्दी भेला पर अहाँ अपन नाक सभ कोना पोछैत होयब | आ यैह कल्पना करैत हमरा हँसी लागि गेल " |

एकटा छला गोनू झा

गोनू झाक ई परिहास सुनि माँ काली से हो हँसि पड़लीह आ बजलीह - " गोनू' अहाँ बुधियार भक्त छी | हमरो अहाँ नहि छोड़लहूँ | जाउ हमर आशीर्वाद अछि जे आहाँकेँ धूर्ततामे क्यो नहि हरा सकँए | "


पिताक आशीर्वाद


गोनू झाक पिताकेँ ज्योतिषी लोकनिसँ हाथ देखेबाक बड़ सौख रहनि | दूर दूरसँ हस्तरेखा देखनिहार आबथि आ हुनका बूडि बना पाइ ऐंठी, विदा भs जाइत छलाह |

एक दिन गोनू झाकेँ किछु पैसाक आवश्यकता छलनि | ओ अपन पितासँ छलनि | ओ अपन पितासँ पाइ मँगलनि मुदा पिता पाइ देब अस्वीकार कs देलथिन | तखन गोनू झा हुनक दुर्वलतासँ लाभ उठ्यबाक व्योंत लगओलनि | आ एकटा नाटक मंडलीमे गेलाह | ओतsसँ गेरुआ वस्त्र, जटा आ एकटा कमण्डल भाड़ा पर लs अनलनि | पशचात ओ गेरुआ वस्त्र पहिरलनि, माथ पर जटा जगओलनि, देहमे विभूति लेपलनि तथा हाथमे कमण्डल धारण कs अपन घरक मुहँथरि पर पहुँचि गेलाह | महात्मा बुझि गोनू झाक पिता हुनका बड़ आदरसँ बैसओलनि आ पुछ्लनि - " महाराज, कतs आगमन भेलैक अछि? "

महात्माजी मुहँ पर आंगुर राखि स्वयंकेँ यौनी बाबा कहलनि आ इशारासँ बुझओलानी जे हम सिलेट - पाटी पर लिखिकs गप्प करब |

गोनू झाक पिता महात्माजीकेँ नीक - निकुत भोजन करओलनि | तदुपरांत अपन भाग्यक मादे जिज्ञासा कयलनि |

महात्माजी गोनुझाक पिताक - आगू - पाछंक सम्पूर्ण खेढ़ा कहि देलथिन | ओ ई सुनि गद् - गद् भs गेलाह तथा महात्माजीकेँ दक्षिणास्वरुप बहुत रास धन एवं एकटा औंठी प्रदान कयलनि |

एम्हर महात्माजीक भविष्यवाणी पर सम्पूर्ण गाममे हल्ला मचि गेल | सभ अपन - अपन भाग्य पुछबाक लेल हुनका लsग आबs लागल |

महात्माजी सभक वखान करैत धन बटोरय लगलाह | किछुए दिनमे बहुत रासधन एकट्ठा भs गेलनि आ ओ ओतsसँ डेरा तोड़लनि | गामसँ बहरा ओ अपन हुलिया बदललनि आ अपन वास्तबिक भेषमे आबि गेलाह | महात्माक भेषके नाटक - मंडलीकेँ सुपुर्द कs किछु दिन भरि एम्हर - ओम्हर मटरगस्ती करैत रहलाह |

एक दिन सहसा ओ घर घुरलाह | पिताकेँ हजारो टका आ एकटा औंठी देलनि |

अपन औंठी देखि गोनू झाक पिताकेँ बड़ अचरज भेलनि, ओ पुछलथिन - " अयँ हओ, ई औंठी कतs भेटलह | '

गोनू झा सम्पूर्ण रहस्य फोलि देलथिन | आब हुनकर पिताकेँ नहि रहल गेलनि, ओ कहलथिन - " गोनू, तों तs बापोकेँ नै छोड़लह! | "

- " बाबू, अपने घरमे पहिने बुद्धिक परीक्षा लेबाक चाही आ तखन बाहरक लोक पर हाथ साफ़ करबाक चाही | अहाँ हमरा आशीर्वाद दियs जे हम ऐ विद्या प्रसादे सफल होइत रही | "

- " बेटा संतानकेँ सदा पिताक आशीर्वाद रहैत छैक | तों ऐ पेशामे माहिर बनs तथा तोहर ख्याति दिन दुन्ना - राति चौगुन्ना पसरैत चलि जाओ |

गोनू झा माथ नबाकs पिताक आशीर्वाद ग्रहण कयलनि | 

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